Singers LATA and MANNA DEY |
Anand Bakhshi |
Lakshmikant-Pyarelal |
Mumtaz |
"ये नाटक कवि लिख गए कालिदास।
यहीं पे तपोवन की भूमि के पास ।।
किसी मृग का पीछा करते हुए,
तकी सुंदरी एक दुष्यंत ने।
शिकारी का मन हो गया खुद शिकार,
उसे भा गयी उस चमन की बहार ।
लगती थी वो कोई अप्सरा ,
उसका था नाम शकुंतला ।।
इक कली थी वो जो चटक गयी,
भंवरे के संग भटक गयी ।
प्रीतम को मन में बसा लिया ,
गन्धर्व विवाह रचा लिया।
जब सेज सज गयी प्रीत से ,
मन ने कहा मनमीत से :
मोहे छोड़ तो न जाओगे,
ओ रसिया मन बसिया पिया लेके जिया ।
सगरी नगरी के तुम हो राजन,
डरती हूँ मैं ये सोच के साजन ।
मोहे भूल तो न जाओगे ।।
वन की रानी के वो गीत गाते हुए,
राजा वापस नगरिया को जाते हुए ,
एक अंगूठी निशानी उसे दे गया,
प्रेम की एक निशानी उसे दे गया ।।
जागते वक़्त भी सोयी रहती थी वो,
सैय्याँ के ध्यान में खोयी रहती वो ।
एक दिन द्वार पर आया एक महर्षि ,
कोई है? कोई है? उसने आवाज़ दी ।
प्यार की हाय किस्मत है कितनी ख़राब ,
जब मिला ना अतिथि को कोई जवाब ,
दे दिया उसने निर्दोष को ये श्राप :
जा तू खोयी है जिसके लिए इस तरह ,
भूल जाए तुझे इस तरह जिस तरह ,
भूल जाती है सुबह गयी रात को ,
भूल जाता है पागल कही बात को।।"
This play was composed using the ragas:चारुकेशी ,खम्माज ,पहाड़ी ,नट भैरव in a sequence,creating a Raagmala.
No comments:
Post a Comment