श्रीमती मालती मिश्र
( 28-10-1931 से 1-8-2010)
माँ चली गयी कहाँ हमको छोड़कर
अपने बच्चों से अचानक मुह मोड़कर।
अनहोनी एक सुबह ऐसी थी घटी
हम सभी तो जागे मगर माँ नहीं उठी।
सोते ही में माँ के पंछी प्राण के उड़े
हम अवाक रह गए बुत बने खड़े,
अब कभी न सुन सकेगी माँ हमारी बात
किसके चरण छू के लेंगे हम आशीर्वाद ?
माँ ने मुश्किलों में सदा धैर्य बंधाया
ज़िन्दगी की कठिन राहें चलना सिखाया।
जो हो पास उसमें ही संतोष को रखना
कर्म को ही धर्म बताया था समझना ।
अब ख़ुशी के मौके कैसे बीतेंगे भला
माँ की याद आएगी रुंध जायेगा गला,
ज़िन्दगी में माँ की कमी रहेगी सदा
जब तक खुद हम ज़िन्दगी से लेंगे अलविदा।।
आज के दिन माँ को हमारा शत शत नमन !